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मंगलवार, 18 सितंबर 2012

ब्लॉग वृक्ष पर तरह तरह के फूल और फल


जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है,पर ताम्र-पत्रों पर,शिलालेखों पर,सिक्कों पर,....कई आरम्भ,उत्तरोत्तर विकास अंकित हैं.युग हो,वेद हो,ग्रन्थ हो...हमारे लिए किसी न किसी ने सुरक्षित किया . शुरू में कई कथन हमें ख़ास नहीं लगते,पर समय की गति के साथ उसकी विशेषता बढ़ती है. जैसे ब्लॉग परिक्रमा पर रवीन्द्र प्रभात का यह प्रयास -

समीर लाल और उनके ब्लॉग का आरम्भ http://udantashtari.blogspot.in/2006/03/blog-post.html

सलिल वर्मा यानि बिहारी बाबू फंसे यूँ http://chalaabihari.blogspot.in/2010/04/blog-post.html

कुछ शुरुआत रंगमंच पर एक झलक बन ओझल हो जाता है,कारण-परिणाम से हम अनभिज्ञ अटकलें लगाते हैं...पर बलवंत पटेल की इस ख़ुशी के बाद कुछ नहीं होना कई सवाल देता है,शून्य में उसकी तलाश होती है...शायद कोई जवाब हो आपके पास, देखिये तो

रविशंकर श्रीवास्तव ने जब बनाया ब्लॉग तो क्या कहा - पढ़िए यहाँ

अमरेन्द्र कुमार ने जब ब्लौगिंग शुरू की तो सबकुछ विस्तार से कहा .... यह कोई व्याख्या नहीं, बस आरम्भ का सूत्र है,जिसे देखना सुखकर लगा तो संजो लायी आप तक -

अब आपके सामने ला रही हूँ मेरा इंटरनेट प्रेम और पहला ब्लॉग :) अभि की कलम से http://abhi-cselife.blogspot.in/2010/07/blog-post_07.html

क्या लिखू, क्या कहूं? अंकुर श्रीवास्तव का अपना ढंग,सच के रंग - http://ankura107.blogspot.in/2010/03/blog-post.html

चर्चाकार रविशंकर श्रीवास्तव और चिटठा चर्चा का पहला ब्लॉग गीत और ब्लॉग गान... http://chitthacharcha.blogspot.in/2007/11/blog-post.html

वटवृक्ष का बीजारोपण कुछ यूँ


कहते हैं समय ठहरता नहीं , मौसम बदलते हैं , तेवर बदलते हैं , चाँद भी पूर्णता से परे होताहै और अमावस की रात आती है ... यूँ कहें अमावस जीवन का सत्य है, एक अध्यात्म की खोज -जहाँ से ज्ञान मार्ग शुरू होता है . कभी राम, कभी कृष्ण , कभी बुद्ध , कभी साई, कभी श्री ... जो अमावस को प्रकाशमय करते हैं और कहते हैं - समय, मौसम, तेवर , पूरा चाँद सब तुम्हारे भीतर हैं , थोड़ी देर रुको खुद को पहचानोऔर जानो...........
वटवृक्ष एक ठहराव है, खुद को जानने का, दुनिया को बताने का.......

() रश्मि प्रभा






परिचय,आरम्भ अनगिनत हैं...ढूंढ तो लॉन मैं- आप देंगे इतना वक़्त एक ही दिन ?

5 टिप्‍पणियां:

  1. याद रखें कि जब आप दु:खी होते हैं तो प्राय: वह इसलिए होता है कि आप पर्याप्त प्रखरता से उन विशेष कार्यों को मन की आँखों से नहीं देखते जिन्हें आपको केवल देखना ही नहीं, अपितु महसूस भी करना चाहिए । आज की आपकी प्रस्तुति विलकुल मन की आँखों से देखकर और विशेष कार्यों को एक स्थान पर सहेजकर राखी गयी अनुपम प्रस्तुति है और इसके लिए आप प्रशंसनीय हैं । अच्छा लगा आपके सारे लिंक को बारी-बारी से पढ़कर । मेरे पोस्ट को भी स्थान देने हेतु आपका आभार !

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  2. आश्चर्य है .... आज कैसे कर लेती हैं ? .....
    आपके कर्म करने के जज्बे को मेरा नमन .... !!

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  3. ये तो कमाल हो गया..मेरी दो साल पुरानी पोस्ट...इसी बहाने मैंने भी अपने पोस्ट को अभी दोबारा पढ़ लिया,...शुक्रिया!!

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  4. वाह! थोड़ा श्रम साध्य तो है, पर ये अच्छा विचार है - संग्रह करना - अपने पहले ब्लॉग पोस्ट में किसने क्या लिखा.

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  5. बाप रे! हम तो ओझराए रहते हैं अऊर आप कहाँ कहाँ से का का निकाल लाती हैं.. बस अपना चरण कमल तनी दीजिए ताकि हम गोड़ लाग लें!!!

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