प्रेम .....
गाहे-गाहे इसे पढ़ा कीजे
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं
.....
कोई रंग भरो,इसकी आभा की महिमा न जाए बखानी !उपमा,उपमान,उपमेय .... बशीर बद्र की इस रचना में प्रेम के आगे भावनाओं की शोखी है-
ऐ हुस्न-ए-बे-परवाह तुझे शबनम कहूँ शोला कहूँ
फूलों में भी शोख़ी तो है किसको मगर तुझ-सा कहूँ
गेसू उड़े महकी फ़िज़ा जादू करें आँखे तेरी
सोया हुआ मंज़र[1] कहूँ या जागता सपना कहूँ
चंदा की तू है चांदनी लहरों की तू है रागिनी
जान-ए-तमन्ना मैं तुझे क्या- क्या कहूँ क्या न कहूँ...
कहने के क्रम में प्रेम का प्रेम स्वरुप सबके अपने अपने हैं -
ऋता शेखर ‘मधु’ - http://madhurgunjan.blogspot.in/ प्रेम एक है कई रूप हैंकहीं छांव, यह कहीं धूप हैकहीं ये भक्ति कहीं है शक्तिकहीं विरक्ति तो कहीं आसक्ति|चमक रही थी चपल दामिनीअनवरत बारिशों की झड़ी थीपुत्र-प्रेम में वासुदेव नेयमुना में ज्यों पांव धरे थेयमुना क्यों उपलाई थीपग कान्हा के छूकर उसनेअपनी प्यास बुझाई थी|वात्सल्य-प्रेम में कान्हा केयशोदा भी हरषाई थी|कौन सा था प्रीत कान्हाकौन सा वह राग थाशायद मधुर सी रागिनी सेबह रहा अनुराग थाबेबस बनी थी राधा प्यारीलोक-लाज भूली थी सारी|भक्ति में डूबी थी मीरामहलों की वह रानी थीमन के ही एहसास थे उनकेबन गई कृष्ण-दीवानी थीं|निष्ठुर बने थे मोहन प्यारेवृंदावन को छोड़ चलेविकल गोपियाँ सुध-बुध खोईंकिस प्रेम में वे थीं रोई|पितृ-प्रेम में रामचन्द्र नेवनवास भी स्वीकार कियापरिणीता सीता का पति-प्रेम थादुर्गम वन अंगीकार कियाभ्रातृ-प्रेम से लक्ष्मण न चूकेउर्मि को विरह का भार दिया|देख पति की आसक्तिहाड़ा-रानी विचलित हुईदेश-प्रेम की खातिर उसनेअपने सिर का उपहार दियामनु ने झाँसी के प्रेम मेंवीरांगना-भेष धार लिया|पेड़ों से चिपक बहुगुणा नेवृक्ष-प्रेम का दिया परिचयजीवों से प्रेम करने कामनेका का था निश्चय|संयुक्ता को ले गए स्वयंवर सेप्रेम में कई समर हुएमन-मंदिर में बसा इक दूजे कोलाला-मजनू अमर हुए|अमृता की कविता इमरोजइमरोज के चित्र में अमृताइस प्रेम का क्या नाम होगा?नाम से परेयह एक एहसास हैदूर रहकर भी लगेवह हमारे पास हैरूह से महसूस करोचल रही जब तक सांस हैप्रेम की पराकाष्ठाबन जाता उच्छवास हैप्रेम की बातें मधुरतमसिर्फ वो ही जानतेजो प्रेम से बढ़कर जगत मेंऔर कुछ ना मानते|सीमा सिंघल'सदा'- http://sadalikhna.blogspot.in/
प्रेम सदा ही मधुर होता है, चाहे लिया जाये या दिया जाये जहां भी होता है यह वहां विश्वास स्वयं उपजता है किसी के कहने या करने की जरूरत ही नहीं पड़ती इसके लिए प्रेम निस्वार्थ भाव कब ले आता है मन में कब समर्पण जाग जाता है कब आस्था आत्मा में जागृत हो उठती है और एक ऊर्जा का संचार करती है तरंगित धमनियां स्नेहमय हो हर आडम्बर से परे सिर्फ स्नेह की छाया तले अपने जीवन को सौंप अनेकोनेक सोपान पार कर जाती है बिना थकान का अनुभव किये मन हर्षित होता है जीवन में सिर्फ उल्लास होता है रंजो-गम से दूर उसे सिर्फ एक ही अक्स नजर आता है स्नेह का जिसे जितना बांटो उतना ही बढ़ता है अमर बेल की तरह ..... जब काम मरता है तब प्रेम जागृत होता है जब लोभ मरता है तो वैराग्य का जन्म होता है जब क्रोध का नष्ट होता है तो क्षमा अस्तित्व में आती है और क्षमा के साथ हम फिर स्नेह को समर्पित हो जाते हैं ....!!!
रचना श्रीवास्तव- http://rachana-merikavitayen.blogspot.in/
जब सूरज कोहरे की चादर ओढ़ सोया हो शहर पूरा मध्यम रौशनी में नहाया हो थाम मेरा हाथ तुम नर्म ओस पे हौले सी चलना जीवन जब थमने लगे मायूसी दमन फैलाने लगे तुम पास बैठ प्यार में डूबे शब्द फैलाना नर्म ठंडी बूँदें जो बर्फ़ बने रूई-सी सफ़ेदी जब हर शय को ढके उनमें बनते क़दमों के निशान संग मेरे तुम दूर तक जाना चाय की गर्म प्याली संग पुराना एलबम देखना पलटना एक एक पेज कुछ यों के यादों के परदे पे एक तरंग-सी उठ जाए उस तरंग में तुम मेरे साथ डूबना...
अंजू शर्मा -www.kavitakosh.org/anjusharma
चलो मीत,चलें दिन और रात की सरहद के पार,जहाँ तुम रात को दिन कहोतो मैं मुस्कुरा दूं,जहाँ सूरज से तुम्हारी दोस्तीबरक़रार रहेऔर चाँद से मेरी नाराज़गीबदल जाये ओस की बूंदों में,चलो मीत,चलें उम्र की उस सीमा के परेजहाँ दिन, महीने, सालवाष्पित हो बदल जाएँउड़ते हुए साइबेरियन पंछियों मेंऔर लौट जाएँ सदा के लिएअपने देश,चलो मीत,चलें भावनाओं के उस परबत परजहाँ हर बढ़ते कदम परपीछे छूट जाये मेरा ऐतराज़ औरसंकोच,और जब प्रेम शिखर नज़र आने लगेतो मैं कसके पकड़ लूं तुम्हारा हाथमेरे डगमगाते कदम सध जाएँतुम्हारे सहारे पर,चलो मीत,कि बंधन अब सुख की परिधिमें बदल चुका हैऔर उम्मीद की बाहें हर क्षणबढ़ रही है तुम्हारी ओर,आओ समेट लें हर सीप कोकि आज सालों बाद स्वाति नक्षत्रआने को है,चलो मीत,कि मिट जाये फर्कमिलन और जुदाई का,इंतजार के पन्नों पर बिखरीप्रेम की स्याही सूखने से पहले,बदल दे उसे मुलाकात कीतस्वीरों में,चलो मीत,हर गुजरते पल मेंहलके हो जाते हैं समय के पाँव,और लम्बे हो जाते हैं उसके पंख,चलो मीत आज बांध लें समय कोसदा के लिए,अभी, इसी पल..............
आरक्त चेहरा,खोयी आँखें,बढ़ती धड्कनें,रूकती-चलती साँसें और एक नाम- प्यार का ....
क्रमशः
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbehtareen..... di
जवाब देंहटाएंएक नाम- प्यार का .... हो जब जिंदगी तो क्या सारी दुनिया अपनी लगती है
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार आपका
सीमा जी, रचना जी एवं अंजु जी की कविताएँ बेहद पसंद आई!!|
जवाब देंहटाएंअपनी कविता देख कर खुशी हुई...आभार !!
सभी कविताएं कमाल .. लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ...
सभी कविताएं बहुत बढ़िया हैं .....
जवाब देंहटाएंarewah kamal hai itni sunder kavitaon me meri bhi kavita achchha laga dekh kar
जवाब देंहटाएंdhnyavad
rachana
एक से बढ़ कर एक ...
जवाब देंहटाएंसारी कविताएँ बहुत बहुत अच्छी हें, सभी शामिल साथियों को बहुत बहुत आभार और उससे पहले आपको जो आप एक मंच पर लेकर हमें बिना मेहनत के पढ़ा रही हें.
जवाब देंहटाएंएक जगह ...प्यार ही प्यार.अच्छा लग रहा है,यहाँ आकर.
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