कलकल की साज पर
नन्हीं बूंदों की बारिश
और तुम्हारी याद...........
बिल्कुल कॉफी-सी लगती है !
तेज हवाएं,
ठिठुरती शाम
और तुम्हारी याद........
बिल्कुल अंगीठी-सी लगती है !
रुई से उड़ते बर्फ,
बर्फ की चादर
और तुम्हारी याद..........
बिल्कुल जन्नत-सी लगती है !
कहो तो -
कौन हो तुम ???.................
कोई छुवन,कोई सिहरन,कोई धुन,कोई गीत,कोई आवाज़.............या है प्यार !साँसों की संजीवनी है प्यार -
कोई छुवन,कोई सिहरन,कोई धुन,कोई गीत,कोई आवाज़.............या है प्यार !साँसों की संजीवनी है प्यार -
तभी कहती हैं ...
सरस्वती प्रसाद - http://kalpvriksha-amma. blogspot.in/
सुबह,दोपहर,शाम,
और रात के रंग में रंगी
-समय की चादर,
बिना रुके सरकती जा रही हैं.....
धडकनों के अहर्निश ताल पर,
किसी अज्ञात नशे में झूमती,
ज़िंदगी थिरकती जा रही हैं.....
आगे बढ़ो,
जी चाहे जिस रंग से,
चादर पर अपना नाम लिख दो ,
जीवन-पात्र में ,
प्राणों की बाती डालकर,
नेह से भर दो.......
लौ उकसाओ,
और रंगों की मूल पहचान सीख लो,
इसी ज्योति में वो सारी तस्वीरें,
कहीं-न-कहीं दिखेंगी-
जो तुम्हारे आस-पास हैं...
देर मत करना,
वरना चूक जाओगे...
समय का क्या हैं,
उसके चरण नहीं थमते,
भूले से भी किसी का
इंतज़ार नहीं करते...
जीने के लिए मेरे प्रियवर ,
मन को अनुराग रंग में रंग लो..............
यह मेरी सीख नहीं,
प्यार भरा उपहार हैं!
उपासना सियाग - http://usiag.blogspot.in/
कहते हैं कि जब कोई प्रेम
में होता है तो
उसे आसमान का रंग
नीले से बैंगनी या गुलाबी
नज़र आने लगता है ......
पर यह भी तो कहा जाता है
के जब कोई प्रेम
में होता है तो उसे कुछ भी
नज़र नहीं आता ,
प्यार अँधा होता है
और उसे अपने प्रिय के
सिवाय कुछ भी तो दिखाई
देता नहीं है
तो फिर ये रंग ,कैसे भी हो
क्या फर्क पड़ता है .........
वह तो बस अपनी आँखों में
अपने प्रिय की छवि को बसाये
पलके मूंदे रखता है ........
अँधा नहीं बनता वह,
बस कहीं अपने प्रिय की छवि
उसकी आँखों से दूर ना हो इसीलिए
उन्हें मूंदे रखता है ........
शांतनु सान्याल - http://sanyalsduniya2. blogspot.in/
उस सजल नयन के तीर बसे हैं कदाचित
चमकीले बूंदों की बस्तियां,
साँझ ढले
ख़ुश्बुओं के जुगनू जैसे उड़ चले हों
दूर अरण्य पथ में,
अंत प्रहर के स्वप्न की तरह,
बहुत ही नाज़ुक,
कोई प्रणय गीत लिख गया
शायद मन -
दर्पण में भोर से पहले,
तभी खिल चले हैं भावना के कुसुम,
सूर्य उगने से पहले,
न जाने कौन छू सा गया
लाजवंती के पल्लव,
कांपते अधर से गिर चले हैं शिशिर कण,
या उसने छुआ हैं अंतर्मन - -
निधि टंडन - http://zindaginaamaa. blogspot.in/
खुद ब खुद आ जाता है
बिन बुलाए ...
बिन खटखटाए ..
बिन कहे ...
बिन सुने ...
आना ही धर्म है जिसका
छा जाना ही कर्म है जिसका
अजब बदतमीज़ होता है न प्यार .
:) प्यार में क्या नहीं कह जाते हम , इस प्यार को मैं क्या नाम दूँ .......................... क्रमशः
मेरी रचना को इस प्रेममयी श्रृंखला में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेममयी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं:-)
धडकनों के अहर्निश ताल पर,
जवाब देंहटाएंकिसी अज्ञात नशे में झूमती,
ज़िंदगी थिरकती जा रही हैं.....
bahut sundar ...
sabhi links ..
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..!! एक ही जगह विविध रचनाएँ पढ़ने को मिली..!!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ..!!
आभार उत्कृष्ट रचनाओं को पढवाने के लिये...
जवाब देंहटाएंक्या बात है ... किसी एक की तारीफ़ करना मुश्किल हो जाता है ऐसे उत्कृष्ट चयन पर ... आपका एक लम्बा सा शुक्रिया बनता है :)
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