प्यार ने इमरोज़ को बनाया या इमरोज़ ने प्यार को .... कैसे कहूँ,क्या कहूँ ! अमृता को इमरोज़ के प्यार ने आफ़ताब बनाया- जहाँ इमरोज़ खड़े हो जाएँ,अमृता मिल ही जाती है ! इमरोज़ से जो भी मिला,उसने प्यार के खुदा को पाया - इमरोज़ - एक तपस्वी,जिसने अपने इर्द गिर्द अदृश्य प्रेम की गुफा निर्मित की, गुफा के पोर पोर में अमृता के रंग भर दिए. इस चित्रकार की कूची अमृतामय रही,उन रंगों ने मेरी कलम को उकसाया .... तो एक प्यार की कहानी - मेरी कलम से ..
अमृता -
एक टीनएजर की आँखों में उतरी
तो उतरती ही चली गई ...
वक़्त की नाजुकता
रक्त के उबाल को
किशोर ने समय दिया
फिर क्या था
समय अमृता को ले आया ....
अमृता के पास शब्द थे
इमरोज़ के पास सुकून का जादू
जिससे मिला उसे दिया
निःसंदेह अमृता ख़ास थी
तो उसके घर का कोना कोना
महक उठा इस सुकून से ...
समाज ने उम्र के अंतराल को इन्गित किया
खुद अमृता ने भी
पर इमरोज़ ने हर तरफ रंग भर दिए
दीवारों पर
अमृता की हथेलियों पर
आँखों में
चेहरे पर
रिश्ते दर रिश्तों पर
यूँ कहें इश्क बनाम इमरोज़
अमृता के घर में जज़्ब हो गया ...
घर हौज़ ख़ास नहीं
ग्रेटर कैलाश नहीं
न दिल्ली, न मुंबई - कोई शहर नहीं
घर -
बस अमृता का वह पोस्टर
जिससे इमरोज़ की चाहत जुड़ गई
एक कमरे का वह मकान
जहाँ अमृता जीने को आती रही
एक स्कूटर
जिसकी रफ़्तार में
अमृता इमरोज़ हो गई
और अतीत -
खुरचनों की तरह जमीन पर गिर गया !
बड़ी बात थी पर सहज था
क्योंकि अतीत ने सिर्फ अमृता को देखा था
इमरोज़ ने अमृता की आत्मा को
....
यहाँ तो साथ चलते रिश्तों से नाम गुम हो जाते हैं
पर इमरोज़ हर सुबह
सूरज की पहली किरण से लेकर
रात सोने तक
एक ही नाम कहता है - अमृता !
इतनी शिद्दत से चाहा इमरोज़ ने
कि शिद्दत भी खुद पे इतराती है
समंदर सा इमरोज़
सीप सा इमरोज़ - अमृता को मोती बनना ही था !
प्यार की एक ख्वाहिश पारुल पुखराज के ख्यालों से उतरी ----- छुन छुन छनननन
पारुल "पुखराज - http:// parulchaandpukhraajkaa. blogspot.in/
इसके पहले
कि खुश्क़ हो जाये ये दिन
और ख़ामोश , दुबक कर सो जाए
रात की मसहरी में …
गुज़रना चाहती हूँ तुम्हारी जर्जर आवाज़ के गलियारे से
एक बार फिर …
वहां ,
उसकी गूँज के अंतिम छोर पर
टंगा होगा अब भी
इक बड़ा, पुराना आला
जहां थक कर बैठ जाते थे हवा में पैर झुलाए
हम दो
चाहती हूँ सराबोर करना
दुपट्टे की कोर
तुम्हारी कासनी मुस्कुराहट के छींटो से,
टूटते जुमलों में पिरोना
ज़िद की लड़ियाँ…
स्मृतियों में ही सही
जिलाना चाहती हूँ अपने अंतस की
नन्ही बच्ची
जिसे चाव था धुँध का ,धनक का,
उजली सीपियों का …
जो लहरों की लय पर छेड़ती थी
ऊँघती सारंगी की देह में
मल्हार…
जिसकी फुहारों में भीगता था
तुम्हारे काठ का अभिमान …
इसके पहले
कि दिन झपकने लगे अपनी अलस पलकें …
एक बार फिर
गुज़रना चाहती हूँ
तुम्हारी अधूरी आवाज़ के गलियारे से
बस एक बार …
प्रेम की अपनी अपनी परिभाषा है, क्योंकि प्रेम अनंत है,अविचल,अविरल है...ब्रह्मांड के हर अर्थ में है, हर कथा,हर वेश में है ....
अंजू अनन्या - http://haripriya-radha-anju. blogspot.in/
प्रेम
लेता है जन्म
कारागृह में .....
विषमता के
समंदर से
गुजरता ...
खिलता है
यमुना तट पे ...
धड़क उठता है,
मधुबन,
उसकी महक के
स्पर्श से ......
और फिर
गूंज उठता है
अनूगूंज सा ....
मंदिर के
अनहद
नाद में .....
मेरी कलम,मेरा मन,मेरी रूह कहती है -
जो भी नाम दो...
प्यार
इश्क
मुहब्बत
ख़ुदा कहो या ईश्वर
शिव कहो या आदिशक्ति ........
एहसास तो है ही यह
रूह से इसे महसूस भी करते हैं
पर जिस तरह ईश्वर
मंत्र की तरह
दिल,ज़ुबान,मस्तिष्क से निरंतर प्रवाहित होता है...
प्यार को जितनी बार कहो-
कम लगता है
जितनी बार सुनो
नशा होता है ...
प्यार एक आग है
जिसमें शब्दों का घृत आँखों से डालो
या स्वाहा की तरह -प्यार है' कहो
यह बढ़ता है .....
शरीर आत्मा -
सबको अपनी आगोश में
बिना हाथ बढ़ाये भर लेता है !
तर्क के छींटे
प्यार में नहीं होते
हो ही नहीं सकते ...
सिर्फ एहसास नहीं है प्यार
पूरी सृष्टि समाहित है इसमें
जिसे देखा भी जाता है
छुआ भी जाता है
मनुहार,तकरार सब होता है प्यार ...
प्यार जताने से विश्वास की लौ बढ़ती है
खामोश विश्वास
खुद आशंकित होता है
ख़ामोशी लुप्त हो जाती है
और आशंका ही एक दिन प्रस्फुटित होती है !
सिंचन न हो तो प्यार
शुष्कता में शुन्यता से भर जाता है
सच तो बस इतना है
कि प्यार सिर्फ एहसास ही नहीं
अभिव्यक्ति भी है ....
क्रमशः
अमृता के पास शब्द थे
जवाब देंहटाएंइमरोज़ के पास सुकून का जादू
जिससे मिला उसे दिया
निःसंदेह अमृता ख़ास थी
तो उसके घर का कोना कोना
महक उठा इस सुकून से ...
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चाहती हूँ सराबोर करना
दुपट्टे की कोर
तुम्हारी कासनी मुस्कुराहट के छींटो से,
टूटते जुमलों में पिरोना
ज़िद की लड़ियाँ…
स्मृतियों में ही सही
जिलाना चाहती हूँ अपने अंतस की
नन्ही बच्ची
जिसे चाव था धुँध का ,धनक का,
उजली सीपियों का
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~और फिर
गूंज उठता है
अनूगूंज सा ....
मंदिर के
अनहद
नाद में .
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प्यार जताने से विश्वास की लौ बढ़ती है
खामोश विश्वास
खुद आशंकित होता है
ख़ामोशी लुप्त हो जाती है
और आशंका ही एक दिन प्रस्फुटित होती है
.
. Ek ek lafz mano moti sa piroya ho ................hats off you all
प्यार जताने से विश्वास की लौ बढ़ती है
जवाब देंहटाएंये शब्द ये पंक्ति नि:शब्द कर देती है
एक खामोशी उस
विश्वास की लौ को
निहारती है ...
सादर
बहुत अच्छी रचनाएँ.प्यार को जताना चाहिए,यह सीख मिली
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