कविता हो,या कहानी.... नहीं कुछ भी बेमानी.भले इससे तन ना ढंके,भूख ना मिटे,-पर एक अव्यक्त सुकून मिलता है ! जो सही मायनों में लिखते हैं,उनकी लेखनी विष वमन नहीं करती,...वह तो हर क्षेत्र में इन्द्रधनुष से उभरते हैं. स्वान्तः सुख ही औरों को सुख देता है,अपना अर्थ दूसरों में मिलता है . पर जो शब्दों को तोड़ता मरोड़ता है,वह कवि नहीं होता. बारूद से तैयार शब्द कवि के हो ही नहीं सकते . इसी व्यथा में कहा है अमृता तन्मय ने कुछ यूँ कि http://amritatanmay.blogspot.in/2012/09/blog-post_13.html
कवि का क्या भरोसा ?
कब क्या कह दे
मात खायी बाज़ी पर भी
शह पर शह दे...
कविता का क्या मोल है ?
हिसाब में बड़ा झोल है...
क्या ये नारियल का खोल है ?
या फूटी हुई ढोल है ?...
दिवसीय प्रेम,दिवसीय महिलाओं की उपलब्धि,दिवसीय माता-पिता का महत्व, दिवसीय हिंदी की महिमा !....यह जागरण नहीं,दिखावा है - हिंदी भाषा नहीं,सबको जोड़ने की सबसे सरल कड़ी है, समझो तो प्रेम,दर्द,कल्पना जो हिंदी में है,उसकी बात ही जुदा है! नव रस जीवन के सही मायनों में हिंदी के हैं . क्षुब्धता की स्थिति में कहती हैं कविता रावत http://kavitarawatbpl.blogspot.in/2012/09/blog-post.html
क्या बात है जो विश्व के बड़े-बड़े समृद्धिशाली देश ही नहीं अपितु छोटे-छोटे राष्ट्र भी अपनी राष्ट्रभाषा को सर्वोपरि मानकर अपना सम्पूर्ण काम-काज बड़ी कुशलता से अपनी राष्ट्रभाषा में संपन्न कर तरक्की की राह चलते हुए अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं वहीँ दूसरी ओर सोचिये क्यों विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में अपनों की बीच उनकी राष्ट्रभाषा कहलाने वाली हिन्दी अपना वर्चस्व कायम करने में आज तक असमर्थ बनकर अपनों के बीच आज पर्यंत बेगानी बनी हुई है?
जीवन खुद के प्रश्नों में उलझा हुआ खुद को तलाशता है,कभी भीतर कभी बाहर,कभी तम में कभी प्रकाश में,कभी मृत्यु रुदन में ढूंढता है अपना अस्तित्व,कभी अकेलेपन में अपनी परछाईं को पहचानने की अथक कोशिश करता है.साँसों का चलना मात्र तो जीवन नहीं ! सुनिए अनामिका की सदायें http://anamika7577.blogspot.in/2012/07/blog-post_18.html
आह ! विश्वास और संदेह का
ये मोहक मिलन !!
कैसी विडंबना है ये
मैं जीवन के हर क्षण में
भयभीत हूँ !!...
सम्मान,सम्मान,सम्मान - अब लिखने से अधिक सब इसके लिए हैं परेशान -
जिसे मिला,उसमें क्या था ख़ास,
मेरे लेखन पर क्यूँ न हुआ विश्वास !
माथापच्ची और समाधान में है परेशान,हैरान सारे कद्रदान, तो मिल गया एक कार्टून काजल कुमार की कूची को -
ये है तमाशा,जिससे फैली निराशा !
कई बार हम बहुत कुछ कहना चाहते हैं,सुनना चाहते हैं-पर मन की त्रिवेणी में कभी गंगा,कभी यमुना,कभी लुप्त सरस्वती के मध्य आध्यात्म को जीते हुए भी रह जाते हैं मौन - कुछ यूँ
http://anupamassukrity.blogspot.in/2012/09/blog-post_12.html अनुपमा सुकृति और उनके अनकहे शब्द ...
मूर्तिकार,रचनाकार,कलाकार,सृष्टिकर्ता,भाग्यविधाता,...कहीं न कहीं है बाध्य,रह जाती है सूक्ष्म कमी और वहीँ से आरम्भ होता है शब्दों के यज्ञ में भी एक मौन !
अनुनाद-छोटा स्वर,एक प्रत्युत्तर . जितने गहरे जाओ,अर्थ उतना ही गहरा मिलता है.हर गहराई के अलग मायने,पर गहराई ज़रूरी है अनुनाद के लिए.बीज न हो तो प्रस्फुटन कैसा,वाद्य यंत्रों पर स्पर्श न हो तो आवाज़ कैसी . विमलेन्दु की रचना http://uttampurush.blogspot.in/2012/09/blog-post_11.html
चन्द्रमा गूँजता है
पृथ्वी की कक्षा में
तो रोशनी मुस्कुराती है
गहरी रात में भी ।....
इस अनुनाद के लिए पढ़िए,भावनाओं के साथ संगत कीजिये,तब जानेंगे लेखन का मूल्य ....
are wah kavita ji ka likha padha abhi baki padhti hu:)
जवाब देंहटाएंअनुनाद के लिए.बीज न हो तो प्रस्फुटन कैसा,वाद्य यंत्रों पर स्पर्श न हो तो आवाज़ कैसी .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावों का संगम .. और लिंक्स
achcheh link:)
जवाब देंहटाएंhindi diwas ki shubhkamnayen..
padhne ko acchhe links mile. aabhar meri rachna ko yaha sammanit karne k liye.
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जवाब देंहटाएंशुभ दिन और उत्कृष्ट लिंक्स ...और ऐसे में अपनी रचना को पाना कितना आह्लादकारी हो सकता है ......ये मैं कैसे कहूं ....!!बस इतना ही कह सकती हूँ कि ...आपका ह्रदय से आभार ..... !!!आज मन बहुत खुश हुआ अपनी रचना यहाँ देख कर ....!!!
लेखन का मूल्य आज पूछ रहा है कि उसका वास्तविक मूल्य क्या है ? आपने सजगता से इस बात को रखा है जो मंथन योग्य है . आपका आभार..
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक पढ़वाने के लिए आभार.
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