पढ़ते सभी है पर जानते नहीं क्या पढ़ें
ठीक उसी प्रकार
लिखते सभी हैं पर जानते नहीं क्या ख्याल रखें !
कविता,कहानी,ग़ज़ल,संस्मरण... राजनीति नहीं कि हम एक दूसरे की बखिया उधेड़ें .
नापसंदगी जायज है,पर अपशब्द .... ?
सही कहा है अंजू चौधरी ने यहाँ- http://apnokasath.blogspot.in/2012/09/blog-post.html
हम कवि हैं, हम एक ब्लौगर समाज की निर्मल परिपाटी हैं, हम अमर्यादित शब्दों के अधिकारी नहीं
और यदि हैं - तो इसे निर्मूल खत्म करें . कौन हमेशा सौ प्रतिशत देता है जीवन में
तो याद रखिये कबीर वाणी -
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो मन खोजा आपना ,मुझसे बुरा न कोय .
सही प्रश्न उठाया है अंजू चौधरी ने कि हम कौन होते हैं किसी को भी अपने से कम और कमतर आंकने वाले ...
प्रेम अपने आपम में एक भक्ति है और जहाँ भक्ति है वहाँ प्रेम पूजा के सिंहासन से कम नहीं . प्रेम ईश के प्राप्य की
अदभुत अनुभूति है ... इसको ही दिखाया है अवन्ती सिंह ने
प्रेम और उपासना में बहुत अधिक फर्क नहीं है
बशर्ते के दोनों में पावनता हो, पवित्रता हो
जिस से प्रेम हो, मन से उस की उपासना भी की जाये
प्रेम की पराकाष्ठा पर पंहुचा जा सकता है... प्रेम उदगम है ईश मार्ग का, तो याद रखें प्रेम बिना नहीं है साईं
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला....और यदि हो वो बालिकावधु तो कर्तव्यों की सीख और उसकी परिणिति में ही समय
अपने स्व की पहचान भूल जाता है . सजाय चौरसिया की पत्नी गार्गी की कलम यही कहती है यहाँ -
जिम्मेदारियों के रास्तों से तालमेल बिठाते सोचा अब जरा ......
खुली हवा में सांस लूंगी
और थकान मिटाऊंगी
पर जिसके साथ गाँठ जोड़ वह आई थी
वह पैरों की " बेड़ियाँ " बन गया , वो पलंग पकड़ गया
और वो फिर से
थकान लिए सेवा में लग गयी
बिलकुल तन्हा बिलकुल अकेली !
समय- शिव ही तो है, झंझावातों के विषपान से उसका नीला कंठ नहीं दिखता, पर समय हमसे आगे बढ़कर विष का प्याला लेता है !
अनुकूल हो या प्रतिकूल - समय शिव बनकर साथ रहता है . तभी तो अपने मन अभिमन्यु की कह पायी हैं शशि पवार
http://sapne-shashi.blogspot.in/2012/09/blog-post_6.html के अभिव्यक्ति क्षेत्र में -
दुःख से रीत जाते
सारे एहसास
निकल जाता है वक़्त
बिखरते है ख्वाब ,पर
कर्म की वेदी पर
नहीं हारता
मेरे मन का अभिमन्यु ...... सच है , अभिमन्यु मरता दिखता है, पर जो आवेश ह्रदय से उठता है-वह कहता है,
अभिमन्यु की जीत, अभिमन्यु की अमरता ...
लम्हा जब वक़्त से ओस की बूंद की तरह गिरा तो वह 'गुलज़ार' हुआ , गुलज़ार की छिहत्तरवीं सालगिरह पर लम्हों का नायाब तोहफा
एक लम्हा गली के मुहाने पर ठिठक गया
एक ने हिम्मत करके अन्दर झाँका
गली बहुत संकरी थी
और दूसरे मुहाने पर बंद भी
थोडा ठिठक कर
थोडा झिझक कर
एक लम्हा अन्दर घुस पड़ा..... लम्हों की अपनी दास्तान होती है,कभी वेद ऋचाओं सी,कभी चिरौन्धी गंध सी....
एक कल था एक आज है ... नानी अब नहीं कहती कहानी, क्योंकि जो परिवर्तन हुआ है, उसमें परियां बच्चों के लिए अजनबी हो गई हैं !
डॉ आशुतोष मिश्रा ने इस दर्द को महसूस किया है http://ashutoshmishrasagar.blogspot.in/2012/09/blog-post.html
क्या आनेवाला कल नानी दादी को कहानी कहने की फुर्सत देगा, क्या बच्चे विश्वास कर सकेंगे कि रात गए परियां उतरती हैं धरती पर !
मेरी हमेशा ख्वाहिश रही - बनूँ मैं सपनों के सौदागर का प्रतिरूप, चुन लाऊं ढेर सारे ख्वाब और आँखों में भर दूँ . रचनाओं की झोली से ख्वाब मिलेंगे -
ठीक से ढूंढिए , मैं फिर आती हूँ दूसरी झोली लिए ....
अभी तो सबको पढ़ना शेष है ... सिर्फ आपको पढ़कर जाना जा सकता है कि यह प्रस्तुति और लिंक्स दोनो ही उत्कृष्ट होंगे ...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
वाह रश्मि जी एक अलग ही तरह की पोस्ट आभार -- बहुत इंट्रेस्टिंग इन सूत्रों पर जाकर जरूर पढूंगी कुछ खास ही होंगे जिनका चयन आप द्वारा किया गया हो
जवाब देंहटाएंwah di.. ab links bhi milenge yahan par... :))
जवाब देंहटाएंbahut khub..
बहुत सुन्दर लिंक्स दी.....
जवाब देंहटाएंऔर आपकी चंद पंक्तियाँ ललचा देती हैं पढ़ने को...
सादर
अनु
अपनों का साथ ....का लिंक देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसाथ ही साथ बाकि के लिंक्स भी लाजबाब है :)))
waah rashmi ji ek naya andaaj sach me is prastuti ne to man moh liya , sabhi links bhi bahut acche hai ,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...ek alag andajjj
जवाब देंहटाएंaaderneeya rashmi jee bahut dino ke baad aaj blog par aana hua.. aapka yah sanyojan behtarin laga...meri rachna aapne shamil kee iske liye aapko hardi dhnywad..ek baar phir kahoonga kee aapka yah prayog behad accha hai...sadar pranam ke sath
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