यदि तुम्हारे पास सही शब्दों की ताकत है तो कर लो दुनिया मुट्ठी में ...
शब्द देते हैं हौसला
शब्द विश्वास
शब्द से दूरियां मिट जाती हैं
कहो तो ...
शब्द करते हैं आह्वान,माध्यम है रिश्तों को बचाने का,धरा को बचाने का - शब्दों का इन्कलाब हो तो सूखी धरती हरी हो जाए,सूखे नैनों से आंसू छलक जाएँ,दुर्गा का आगमन हो,विघ्नहर्ता विघ्न हर लें,........सबकुछ संभव है शब्दों से. अदितिपूनम की पुरवाई शब्दों से आह्वान कर रही है इस रचना में http://purvaai.blogspot.in/2012/08/blog-post.html
ज़िन्दगी हमेशा एक नए आयाम देती है विचारों का .... अधिकतर हम जो कहते हैं, उसके अलग मायने निकलते हैं क्योंकि कहने सुनने समझने और लेने में अपनी सोच भी शामिल होती है ...
आत्मचिंतन अपनी आत्मा का चिंतन होता है, जो कुछ भी होता है उसे लेकर . रश्मि प्रभा का चिंतन सदा के ब्लॉग पर http://aatamchintanhamara.blogspot.in/2011/12/blog-post_17.html दिल पर हाथ रखकर कहिये, सच है न ?
जैसे जब किसी की बेटी के साथ कोई दुर्घटना हो जाती है,उसका पति से अलगाव हो,या जीते जी अग्नि संस्कार-जितने मुंह उतनी बातें! क्योंकि अनहोनी दूसरे के घर की समस्या है, बिना सच जाने कुछ भी कहना क्या न्यायोचित है ? आखिर कब तक चलेगा अन्याय का सिलसिला और आत्मा न्याय के लिए भटकेगी ?????? संध्या तिवारी मांगती है जवाब उन रूहों के एवज में -
ठगी इतनी बढ़ गई है कि शक,कुफ्ती बढ़ गई है... पर कई बार परिस्थितियाँ किसी तक जाने के लिए माध्यम ढूंढ लेती हैं. पंडित जी की यह कहानी मन को झकझोरती है, उनका आना,उनकी परिस्थिति ईश्वर के आने सा लगा ..... क्रमशः है कहानी,पढ़ना तो शुरू कीजिये मीता पन्त की इस कहानी को http://meetapant-dreams.blogspot.in/2012/09/blog-post_2685.html
आम दिनचर्या - एक गृहणी की,सबका आईना है ... जो छोटा लगता है,पर बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण है .मृदुला प्रधान की रचना http://blogmridulaspoem.blogspot.in/2012/09/blog-post_13.html में अपनी छवि दिखेगी,कुछ जोड़-घटाव के संग .
प्रेम पत्र :)))))))))))))) सुनते एक मुस्कान कौतुहल से भरी सबकुछ पढ़ लेना चाहती है और वह सबकुछ लिख देना चाहती है ... अनु ने लिखा है http://allexpression.blogspot.in/2012/09/blog-post_14.html लिखो,सहेजो,पढ़ो,ना पढ़ो.....प्रेम है तो है ...
क्षितिज भ्रम नहीं,पर पहुँच से दूर हमने खट्टे अंगूरों की तरह मान लिया है उसे भ्रम,तभी तो धरती भी भ्रमित आकाश से कहती है अपनी चाह शालिनी की इस रचना में
रूद्र के सर में दर्द है,भावना का परेशान होना लाजिमी है-माँ जो है. और रूद्र तुम टीवी मत देखो, हम सब की दुआ है, आशीर्वाद है - तुम हमेशा स्वस्थ और मस्त रहो .... हम नहीं पढ़ना चाहते यह
हम चाहते हैं ये http://rudrapandey.blogspot.in/2012/08/blog-post_5.html :)
रूद्र के लिए हिदायत के साथ लेती हूँ विराम,कल तो हमारे साथ आएगा ही आज बनकर,फिर होगी कुछ सौगात आपके लिए और मेरे लिए भी ....
बहुत खूबसूरत लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंशब्द देते हैं हौसला
जवाब देंहटाएंशब्द विश्वास
शब्द से दूरियां मिट जाती हैं
और सबकुछ आस-पास महसूस होता है ... जैसे ये लिंक्स सब एक जगह मिल जाते हैं जब ...
आभार आपका
खूबसूरत लिंक संयोजन..............आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता से लिक्स परोसा गया है मजा आगया..बहुत भूख लगी थी..आभार..
जवाब देंहटाएंare wah ! aaj to mai bahut hi achhi jagah pahunch gai bahut hi achhi achhi lekh padane ko mila ...thank uuu di
जवाब देंहटाएंरश्मि दी ...
जवाब देंहटाएंआपने चुना है सो खुद को नगीना महसूस कर रही हूँ :-)
आभारी हूँ आपकी...प्रसन्न हूँ अपनी रचना यहाँ पाकर...
और सभी लिंक्स बहुत सुन्दर.
सादर
अनु
हार्दिक आभार रश्मि प्रभा जी , इतने सुन्दर लिंक्स में मुझे भी स्थान देने के लिए .
जवाब देंहटाएंसादर .
bahut sundar links ...!!
जवाब देंहटाएंचर्चा का अंदाज़ और चर्चा ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंरश्मि दी सब तो नहीं पढ़ पाई...
जवाब देंहटाएंलेकिन जो २-३ पढ़ी वो रचनायें सचमुच सहेज कर रखने वाली हैं...
धन्यवाद...
बहुत खूबसूरत चर्चा..
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार!
बहुत ही खुबसूरत....लिंक संयोजन !!!
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