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शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

लिखते हैं शब्द शब्द बिना किसी सांकल के



लिखते वे भी थे 
लिखती मैं भी हूँ 
लिखते वो भी हैं 
पर कुछ शक्स बेपरवाह उन्हें जीते हैं 
लिखते हैं शब्द शब्द बिना किसी सांकल के 
नहीं डरते किसी से 
वे बस लिखते हैं - अपने लिए 
ताकि किसी दिन वे पढ़ सकें उस दिन को 
जिसे वे खोना नहीं चाहते थे !
लिखा या आईना लगाया 
पता नहीं ...
पर जब भी उस दरवाज़े को खोला है - अपना चेहरा दिखा है 
तो यह मान लूँ कि 
चेहरे अजनबी हो सकते हैं - ख्याल नहीं ........        कुछ ऐसे ही ख्यालों को इकट्ठे उठाकर लायी हूँ ...............















11 टिप्‍पणियां:

  1. पर कुछ शक्स बेपरवाह उन्हें जीते हैं
    बहुत सही कहा है ...बहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी !
    आभार ....बहुत बहुत आभार !

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  2. आपका यह प्रयास सराहनीय है ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    सादर

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  3. लिखते हैं शब्द शब्द बिना किसी सांकल के........
    वाह,,,,,,बहुत ही बढ़िया,,,

    आज तक की सुनी गयी सबसे बेहतरीन लाइनों में से एक है ये .."लिखते हैं शब्द शब्द बिना किसी सांकल के"....

    मैंने भी लिखना शुरू किया है,,,कभी पधारिये

    http://vishvnathdobhal.blogspot.in/

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  4. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (२८ अप्रैल, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - इंडियन होम रूल मूवमेंट पर स्थान दिया है | हार्दिक बधाई |

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति..................

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  6. लिखा या आईना लगाया
    पता नहीं ... - bhut hi sacchaa.........

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  7. चेहरे अजनबी हो सकते हैं - ख्याल नहीं
    ..ख्याल अपना जो होता है ...
    बहुत सुन्दर

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