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बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

टिप्पणी तो एक लाइक बटन है ....



टिप्पणी तो एक लाइक बटन है .... 
जो कहता है - तुम्हारे घर हम आये थे !:)
पर कमरों का,दीवारों का,पर्दों का,रंगों का 
सकारात्मक स्पर्श की सूक्ष्म किरणों का अर्थ जाना या नहीं 
....कैसे पता चले !...
जो रूचि से,प्रशंसक के रूप में पढता है वह कुछ कहे बगैर रहता नहीं 
रह भी जाये तो लेखनी में उन अंशों का प्रभाव होता है 
.............
एक ही विषय,एक सी व्याख्या .... सोच की समानता दर्शाती है - 
जो पढ़ते हैं,वे जानते हैं 
जो लिखते हैं वे मन से अहिंसक होते हैं 
.... अब अहिंसा का अर्थ शाकाहारी नहीं 
फिर तो चर्चा बदल जायगी 
सब्जियां भी बिना जीवन के नहीं होतीं 
पपीता तोड़ो तो जो रस निकलता है 
वो लाल नहीं होता 
पर जीवन को ही इंगित करता है 
जीवन नहीं ..... तो सूख जाता है 
जड़ से उखड जाता है - स्वतः ही !!!!!!
...................... बेहतर है कि किसी भी नकारात्मक चिंगारी से हम सकारात्मक उर्जा पैदा करें .... इर्ष्या,द्वेष से आंतरिक घट भरा हो तो उसके परिवेश से देवता लुप्त हो जाते हैं ! तय हमें करना है कि हम दुश्मनी में निष्ठा भाव को मृत बनाना चाहते हैं,या मित्रता न होने पर भी सर्व मंगल मांगल्ये की भावना से चलना चाहते हैं . सोचिये और आइये कुछ पढ़ें -

शिव यानि शक्ति,पार्वती यानि मातृत्व - पुरुष और स्त्री के शरीर,मन की बनावट प्रकृति को सिंचित करती है ... प्रयोजनहीन कोई निर्माण नहीं - श्रेष्ठता अपनी अपनी है,विरोध से उसकी दिशा नहीं भटकती, ना ही अनर्थ को अर्थ कहा जाता है . अर्धनारीश्वर की भूमिका के बावजूद शिव की कठोरता,पार्वती की कोमलता अक्षुण है 


आज भी स्त्री है हर हाल में श्रेष्ठ
मगर उसने ना कभी जताया
जानती है .........जताने वाले कमजोर होते हैं 
..........................................................
प्रतिस्पर्धा का प्रश्न ही नहीं .... सम्मान की बात है . 
दोनों अपनी अपनी परिधि में श्रेष्ठ हैं !

इंसानी फितरत ... जो मिल जाता है,उसे नहीं गुनता - पर जो नहीं मिलता उसके लिए मिली ख़ुशी को भी गँवा देता है 

जो फंस गया 
इच्छाओं के चक्रव्यूह में 
फिर निकल नहीं पाता
कभी बाहर
जीना भूल जाता 
बेचैनी मोल लेता 
उलझ कर रह जाता ........   बेचैनी उसकी अपनी उपज होती है,जिसे बड़े मनोयोग से इंसान सींचता है !

मान,अपमान ... भूख,प्यास ... घर से बेघर ....
गौरैया नहीं खोती आत्मविश्वास,सुबह की किरणों को चोंच में दबाये वह जागरण के गीत गाती ही है 


तुम्‍हारी तपस्‍या से मेरा मन 
भाव-विह्वल हो नित दिन अभिषेक  करने को 
अर्पित करता स्‍नेह, कभी सम्‍मान, कभी ध्‍यान 
वंदित स्‍वरों की पुकार तुम तक पहुँचती जब 
तुम मंद मुस्‍कान लिए 
मुझे भी तप में अपने साथ कर लेती ...!!!....

...... ज़िन्दगी भी कितने खेल रचाती है,रचवाती है . इश्वर जो देता है,उसमें भी जो चलने का साहस करता है - आह ! उसे अपने विकृत मनोरंजन के लिए लोग कैसे कैसे शब्द प्रयोग में लाते हैं !

वह अकेला था
या कई लोगों का
मिला जुला रूप था अकेले
उसने क्या क्या नहीं किया
पेट खातिर
कभी हनुमान कभी शिव
कभी हिजड़ा और कभी नचनिया .....    पेट की खातिर क्या नहीं करता आदमी !


दृष्टि और विश्वास की मान्यता हो तो तुम हो, हर हाल में हर शै में -


छूटती हुयी जिन्दगी में ,
उम्मीद का वजूद -
तेरा होना ही तो है ......!!!!!!!................... जीवन सागर हो या सचमुच का समंदर , उसमें हाथ पांव मारते सुकून पाने की उम्मीद तुम्हीं हो , बस तुम्हीं हो .

इस 'तुम' में भूख,प्यास,गीत,रंग,प्रेम,नृत्य ........ सबकुछ समाहित है 

13 टिप्‍पणियां:

  1. इस मंच पर मेरी कविता को जगह देने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद मौसी जी .... आभार

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  2. सभी लिंक्स देखे...बढ़िया सेलेक्शन!!

    जवाब देंहटाएं
  3. तेरा होना ही तो है ......!!!!!!!
    जो मुझे अपने साथ रखता है ...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. मंच पर मेरी कविता को जगह देने के लिए धन्यबाद

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह …………बहुत सुन्दर लिंक्स संजोये हैं ………हार्दिक आभार्।

    जवाब देंहटाएं
  6. इंसानी फितरत ... जो मिल जाता है,उसे नहीं गुनता - पर जो नहीं मिलता उसके लिए मिली ख़ुशी को भी गँवा देता है sach
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    बेचैनी उसकी अपनी उपज होती है,जिसे बड़े मनोयोग से इंसान सींचता है ! Manav swabhav
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    ज़िन्दगी भी कितने खेल रचाती है,रचवाती है . इश्वर जो देता है,उसमें भी जो चलने का साहस करता है - आह ! उसे अपने विकृत मनोरंजन के लिए लोग कैसे कैसे शब्द प्रयोग में लाते हैं ! aah!
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~`
    पेट की खातिर क्या नहीं करता आदमी !Ek katu satya
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    इस 'तुम' में भूख,प्यास,गीत,रंग,प्रेम,नृत्य ........ सबकुछ समाहित है superbb

    जवाब देंहटाएं
  7. टिप्पणी तो एक लाइक बटन है ....
    जो कहता है - तुम्हारे घर हम आये थे ! :)
    पर कमरों का,दीवारों का,पर्दों का,रंगों का
    सकारात्मक स्पर्श की सूक्ष्म किरणों का अर्थ जाना या नहीं
    ....कैसे पता चले .... ??
    जो रूचि से,प्रशंसक के रूप में पढता है वह कुछ कहे बगैर रहता नहीं
    रह भी जाये तो लेखनी में उन अंशों का प्रभाव होता है
    बेहतर है कि किसी भी नकारात्मक चिंगारी से हम सकारात्मक उर्जा पैदा करें .... इर्ष्या,द्वेष से आंतरिक घट भरा हो तो उसके परिवेश से देवता लुप्त हो जाते हैं ! तय हमें करना है कि हम दुश्मनी में निष्ठा भाव को मृत बनाना चाहते हैं,या मित्रता न होने पर भी सर्व मंगल मांगल्ये की भावना से चलना चाहते हैं ....

    सोचिये .... सोचना है .... सोचते जाना है .... सोचने पर ,समझ में आना है .... समझ में आने पर भी सोचना बाकी रहा जाता है ....... So .... सोचिये .....

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  8. बहुत सुन्दर लिंक्स संजोये हैं.. आभार्।

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  9. दीदी काम के बोझ ने इतना सता रखा है कि लिखना पढाना सब छूट सा गया है!! पता नहीं कटना समय लगेगा सब ठीक होने में.. या फिर बस अब जब आँखें मूदूंगा तभी आराम मिलेगा!!

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  10. यह अंदाज़ अच्छा लगा , बढ़िया लिंक , आभार आपका !

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