लिखते वे भी थे
लिखती मैं भी हूँ
लिखते वो भी हैं
पर कुछ शक्स बेपरवाह उन्हें जीते हैं
लिखते हैं शब्द शब्द बिना किसी सांकल के
नहीं डरते किसी से
वे बस लिखते हैं - अपने लिए
ताकि किसी दिन वे पढ़ सकें उस दिन को
जिसे वे खोना नहीं चाहते थे !
लिखा या आईना लगाया
पता नहीं ...
पर जब भी उस दरवाज़े को खोला है - अपना चेहरा दिखा है
तो यह मान लूँ कि
चेहरे अजनबी हो सकते हैं - ख्याल नहीं ........ कुछ ऐसे ही ख्यालों को इकट्ठे उठाकर लायी हूँ ...............
पर कुछ शक्स बेपरवाह उन्हें जीते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है ...बहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी !
आभार ....बहुत बहुत आभार !
bahut achchhi prastuti.....dhanyawad
जवाब देंहटाएंआपका यह प्रयास सराहनीय है ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
Alag tarah se sochna mahatvpoorn hai.
जवाब देंहटाएंलिखते हैं शब्द शब्द बिना किसी सांकल के........
जवाब देंहटाएंवाह,,,,,,बहुत ही बढ़िया,,,
आज तक की सुनी गयी सबसे बेहतरीन लाइनों में से एक है ये .."लिखते हैं शब्द शब्द बिना किसी सांकल के"....
मैंने भी लिखना शुरू किया है,,,कभी पधारिये
http://vishvnathdobhal.blogspot.in/
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (२८ अप्रैल, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - इंडियन होम रूल मूवमेंट पर स्थान दिया है | हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति..................
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण
जवाब देंहटाएंbahut sundar1
जवाब देंहटाएंलिखा या आईना लगाया
जवाब देंहटाएंपता नहीं ... - bhut hi sacchaa.........
चेहरे अजनबी हो सकते हैं - ख्याल नहीं
जवाब देंहटाएं..ख्याल अपना जो होता है ...
बहुत सुन्दर